गुणों की खान है दही मगर…

गुणों की खान है दही मगर…

प्रेमपाल शर्मा

दूध के जितने भी तरह के उत्‍पाद होते हैं उनमें से दही सबसे अधिक इस्‍तेमाल होने वाला उत्‍पाद है ये बात सभी जानते हैं। दूध को दो उबाल देकर उसे ठंडा कर जामन डालकर रख देने से दूध में बैक्‍टीरिया पैदा होते हैं और दूध को जमाकर दही में बदल देते हैं। आयुर्वेदिक च‍िकित्‍सकों ने स्‍वाद और गुण के आधार पर दही को कई प्रकार में बांटा है। इनमें से कुछ फायदेमंद हैं जबकि कुछ बेहद नुकसानदेह होते हैं।

अपक्‍व दही

सबसे पहले बात करें ऐसे दही की जो दूघ की तरह की हो यानी कुछ जमा हो और कुछ न जमा हो। इसे मंद दही कहते हैं। यह अपक्‍व होती है इसलिए इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्‍योंकि यह वात, पित्‍त, कफ और दाह उत्‍पन्‍न करती है।

स्‍वादु दही

जो दही अच्‍छी अच्‍छी तरह जमा हो, मधुर एवं मामूली खटास लिए हो वह स्‍वादु दही कहलाती है। यह दही खाने योग्‍य, रक्‍त एवं पित्‍त को साफ करने वाली एवं पाचक होती है।

स्‍वादुम्‍ल दही

जो दही भली प्रकार जमा तो हो मगर मधुर एवं कसैला हो उसे स्‍वादुम्‍ल दही कहा जाता है। यही भी खाने योग्‍य होता है।

अम्‍ल दही

जिस दही की मिठास खत्‍म हो जाए और खट्टापन उभर जाए उसे अम्‍ल दही कहा जाता है। यह अग्नि को प्रदीप्‍त करने वाली, रक्‍त पित्‍त तथा कफ को बढ़ाने वाली होती है।

अत्‍यम्‍ल दही

जिस दही में खट्टापन इतना ज्‍यादा हो जाए कि उसे खाने से दांत ही खट्टे हो जाएं, रोंगटे खड़े हो जाए और गले में जलन होने लगे उसे अत्‍यम्‍ल दही कहा जाता है। यह भी अग्नि को प्रदीप्‍त करने वाला, रक्‍त विकार पैदा करने वाला, वायु एवं पित्‍त बनाने वाला होता है। ऊपर के दोनों प्रकार के दही का इस्‍तेमाल बेहद सोच समझकर करना चाहिए क्‍योंकि ये दोनों प्रकार पाचक का काम भी बखूबी करते हैं।

 

गुणधर्म

वैद्यकों के अनुसार दही अग्नि प्रदीपक, स्निग्‍ध, कसैला, भारी, पाक में खट्टा, मल को रोकने वाला, पित्‍त, रक्‍त विकार, सूजन, मेद तथा कफ पैदा करने वाला होता है। यह मूत्रकृच्‍छू, जुकाम, ठंड लगकर चढ़ने वाले बुखार, विषम ज्‍वर, अतिसार तथा दुबलेपन में लाभदायक है। यह बल और वीर्य बढ़ाने वाला है। मीठा दही गाढ़ा, वीर्यवर्धक, भारी एवं ठंडा है। फीका दही मूत्र लाने वाला, दाहकारक एवं भारी है और खट्टा दही रक्‍त को बिगाड़ने वाला, पाचक और अग्निदीपक होता है। बेहद खट्टा दही पाचक होता है मगर जलन पैदा करता है। दही और चीनी का मेल पित्‍त, दाह, प्‍यास को शांत करता है जबकि गुड़ मिला दही धातुवर्धक, भारी एवं वातनाशक होता है।

गाय के दूध का दही मधुर, खट्टा, रुचिकर, अग्नि प्रदीपक, वायुनाशक तथा सभी प्रकार के दह‍ियों में सबसे गुणकारी होता है। इसके उलट भैंस के दूध का दही अत्‍यंत चिकनाई वाला, कफकारक, वायु तथा पित्‍त नाशक, पाक में मधुर, वीर्यवर्धक, भारी तथा रक्‍त को बिगाड़ने वाला होता है। बकरी के दूध का दही उत्‍तम, दस्‍त रोकने वाला, हल्‍का, त्रिदोषनाशक, अग्नि-प्रदीपक तथा श्‍वास-कास, अर्थ, क्षय एवं दुबलेपन में हितकर होता है।

वैद्यों की दृष्टि में दही का पानी दस्‍तावर, गरम, बवासीर, कब्‍ज, शूल तथा दमा का नाश करने वाला होता है। दही की मलाई दस्‍तावर, भारी, वीर्यवर्धक और अग्नि को मंद करने वाली होती है।

इस्‍तेमाल

दही का रायता: नमक, मिर्च, जीरा, पुदीना आदि मसाले तथा लौकी, गाजर, बथुआ आदि डालकर बनाया गया रायता पाचक, रुचिकारक एवं हृदय के लिए हितकर होता है। दही की लस्‍सी जो खांड एवं कच्‍चा दूध डालकर बनाई गई हो वह शीतल, तृषा एवं गरमी को शांत करने वाली, थकान मिटाने वाली एवं तृप्तिकारक होती है। दही का मट्ठा निकालकर मक्‍खन और उससे घी तैयार किया जाता है। इसके अलावा दही को सीधे चीनी, गुड़ या नमक डालकर भी खाने से भोजन का स्‍वाद बढ़ जाता है।

औषधीय उपयोग

दही का नियमित उपयोग करने वालों को अनिद्रा, अपच, दस्‍त एवं गैस की तकलीफें कम होती हैं। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है तथा आंतों एवं अमाशय की गर्मी नष्‍ट होती है। दूध एवं दही के रासायनिक घटक लगभग एक समान होते हैं इसके बावजूद दही दूध के मुकाबले जल्‍दी पचता है और इसलिए ये दूध से श्रेष्‍ठ है।

(प्रेमपाल शर्मा की पुस्‍त शुद्ध अन्‍न स्‍वस्‍थ तन से साभार। ये पुस्‍तक प्रभात प्रकाशन से छपी है।)

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